Mahabharat Dohe Lyrics Part – 2

महाभारत दोहे के लिरिक्स ( भाग – 2 )

अंतवंत छः दीप हैं सप्तम दीप अनंत |
दो आंचल के दीप हैं बलदाउ बलवंत ||

कृष्ण पक्ष की अष्टमी अर्धरात्रि बुधवार 
कारागृह में कंस के भयो कृष्ण अवतार |
सिंह राशि के सूर्य है उदित उच्च के चंद्र
देवन दीन्हि दुंदुभि, तार मध्य स्वर मन ||

मेघ निछावर हो रहे बरसे सौ सौ धार
दमक दमक दामिनी कहे देखौं मुख एक बार | 
छत्र बन्यौ ब्रजराज हित फ़न फैलाए नाग
मथुरा तेरे त्याग से जागे ब्रज के भाग || 

जाने जमुना जग नहीं श्री हरी को अवतार
पावन पद परसन चढ़ी बढ़ी जमुन जल धार | 
धार मध्य वसुदेव जब अकुलाए असहाय
श्री हरी ने रवि सुताये हित दियो चरण लटकाए || 

चली कुमारी नंदिनी आए नंद कुमार |
त्याग बिना संभव नहीं जीव जगत उद्धार ||

अत्याचारी कंस की कुमति बनी तलवार |
अंत तुझे खा जाएगा तेरा अत्याचार ||

दया धर्म जब जब घटे बढ़े पाप अभिमान |
तब तब जग में जन्म ले जग पालक भगवान ||

धीर धरो माँ देवकी दूर न दिन सुख मूल |
अश्रु बनेंगे जननी के कल्पलता के फूल ||

मनमोहन की मोहिनी हरे अहम अभिमान |
माया को मोहित करें मोहन की मुस्कान ||

मावा माखन दूध दही जगे ना इनमे ज्योत |
ज्योत जगे घृत दीप में घृत ना तपे बिन होत ||

नाथो विषधर कालिया निर्मल कर दियो नीर |
गूँजेगी मुरली मधुर जीवन जमुना तीर ||

पापी है दोनों असुर अहंकार अभिमान |
दोनों का मर्दन करे तत्सदीय भगवान ||

गोवर्धन धारण करें लीलाधर बृजराज |
मोर मुकुटधर वेणुधर गिरिधर बन गए आज ||

क्षमा मांग ली इंद्र ने माँगा यह वरदान |
नारायण रखिये सदा नर अर्जुन का ध्यान ||

गो पृथ्वी वाणी किरण गति मती माता ज्ञान |
गौमाता को पूजकर तिलक करें भगवान ||

मारक संहारक नहीं उद्धारक श्रीनाथ
सदगती पाई असुर ने मर कर हरी के हाथ |
कुमति गई पाई सुमति अहम् बन गया हंस
नारायण जी के दर्शन हुए शांत हो गया कंस ||

आत्मा अमर अमोघ है नहीं सांच को आंच |
पाण्डु पंच गुण हो गए आए पांडव पाँच ||

रीति नीति विद्या विनय द्वार सुमति के चार |
प्रीति पात्र होगा वही जिसका हृदय उदार ||

जन्म मरण के मध्य है जीवन कर्म प्रधान |
उज्ज्वल जिसका कर्म हो जीवन वही महान ||

माता ममता मूर्ति के पंच पुजारी प्राण |
माता का आशीष ही पुत्रो का कल्याण ||

समाप्त 

बोल : राही मासूम रज़ा 
गायक : महेंद्र कपूर 

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