महाभारत दोहे लिरिक्स ( भाग – 4 )
धर्म कर्म कर्त्वय जो समय रहे कर जाये |
समय बीतने पर नहीं वही मनुज पछताए ||
कुटर निति संकेत हो कृष्ण कृपा हो जाये |
संकट की जवाला सवयं बने मुक्ति की राह ||
जाको राखे साइयां मार सके ना कोई |
बाल ना बांका कर सके जो जग बेरी होय ||
भीष्म ह्रदय में जल उठी लाक्षा गृह की आग |
बंद किये गृह द्वार सब रेन बिताये जाग ||
माता अरुलघु भ्रात दो चले उठा कर भीम |
पवन पुत्र का वेग था पवन समान असीम ||
देख भीम के रूप को भूली अपना भान
प्रेम उदय मन में हुआ हटा ना पायी ध्यान |
करे हिडिम्बा प्राथना ह्रदय में पीर
महादेव वरदान दो वरे मुझे यह वीर ||
नारी हो या दानवीर रखा प्रेम का मान |
माता कुंती ने उसे दिया वधु समान ||
काल बड़ा है बलवान है सबको नाच नचाये |
पाण्डु पुत्र भी मांगते बिक्षा घर घर जाये ||
ऋतुयें बदले समय पर समय आ रहा पास |
अवसर देखो भाग्ये का रखो ह्रदय विस्वास ||
लक्ष्ये बने प्रीतिशोद जब होता नस्ट विवेक |
पुत्र रूप में भी द्रुपद शस्त्र मांगता एक ||
अवसर परखे वीर को वीर परखता बाण |
आंख लक्ष्य पर पार्थ की करे मक्ष संधान ||
पूर्व जन्म में थे दिए शिव ने जो वरदान |
वरे पांच वर द्रोपदी पांचों गुणी महान ||
छल का बल जब विभल हो छली विकल हो आप |
जब उल्टा पासा पड़े वर भी लगता श्राप ||
अग्नि सुता यह द्रोपदी धर्म-कर्म के साथ |
पाण्डु सुतों संग जा रही लाने नया प्रभात ||
धन्य हस्तिना पूर्व हुआ धन्य राजगृह द्वार
दीप आरती के जले हो स्वागत सत्कार |
राजलक्ष्मी नववधू मंगल द्वाराचार
पाण्डु सुतों संग द्रोपदी सब ने कि स्वीकार ||
सज्जनता फिर झुक गयी देखा बेबस रूप
पाण्डु सुतों के हित बनी फिर वही काली धुप |
पुत्र प्रेम के स्वार्थ में था अँधा धृतराष्ट्र
दिखा विवस्ता वेर्थ ही किया विभाजित राष्ट्र ||
कर्म करे किस्मत बने जीवन का यह मर्म |
प्राणी तेरे हाथ में तेरा अपना कर्म ||
गुरुकुल को ऐसा डसा अभिसांपो का सांप |
किया विभाजन राष्ट्र का गया आत्मा बल कांप ||
अधिपति तीनो लोक के खाये विधुर घर साग |
स्वाद भरा था प्रेम का साग बना अनुराग ||
भोले से बलराम को करके मीठी बात |
दुर्योधन की चाल ने फसा लिया कर घात ||
माँ अपने अधिकार दे पुत्र वधु को शोक |
वृक्ष बढ़े परिवार का दुःख ना करे प्रकोप ||
समाप्त
बोल : राही मासूम रज़ा
गायक : महेंद्र कपूर