सुन घर शहर शहर घर बस्ती लिरिक्स
राम नाम के आळसी और भोजन में उशियार
तुलसी ऐसे जिव ने बार बार दिखार \
उठ भरी दा बज्र बही और झाड़ू देती मशीन
तू सुत्या रब जगता तो ये कुणसी तक़दीर \\
सुन घर शहर शहर घर बस्ती
कुण सोव कुण जाग है
साध हमारे हम साधन के
तन सोव ब्रम्ह जाग है
भंवर गुफा में तपस्वी तापे
तपस्वी तपस्या करता है
अस्त्र वस्त्र कछु ना रखता
नागा निर्भय रहता है
एक अप्सरा आगे ऊबी
दूजी सुरमो सारे है
तीजी सुस्मण सेज बिछाव
परण्या अखन कंवारा है
एक पलंग पर दो नर सुत्या
कुण सोव कुण जाग है
च्यारूं पाया दिवला जोया
चोर किसी विध लाग है
जळ बिच कमल, कमल बिच कलियां
भंवर वाशना लेता है
पांचू चेला फिर अकेला
अलख अलख जोगी करता
परण्या पेली पुत्र जलमिया
मात पिता मन भाया है
शरण मंच्छेंद्र जति गोरख बोल्या
एक अखंडी ने ध्याया है
जीवत जोगी माया भोगी
मरया पछ नर माणि है
खोजो खबर करो घट भीतर
जोगाराम की बाणी है
समाप्त ( End)
बोल ( Lyrics) : ट्रैडिशनल
गायक ( Singer) : गुलाब नाथ जी