ज़िन्दगी इस तरह लिरिक्स ( अनुराधा पौडवाल ) मर्डर
ज़िन्दगी इस तरह से लगने लगी
रंग उड़ जाए जो दीवारों से
अब छुपाने को अपना कुछ ना रहा
ज़ख्म दिखने लगे दरारों से
मैं तेरे जिस्म की हूँ परछाई
मुझको कैसे रखोगे खुद से जुदा
भूल करना तो मेरी फितरत है
क्यूँ की इंसा हूँ मैं नहीं हूँ खुदा
क्यूँ की इंसा हूँ मैं नहीं हूँ खुदा
मुझको है अपनी हर खता मंजूर
भूल हो जाती है इंसानों से
अब छुपाने को अपना कुछ ना रहा
ज़ख्म दिखने लगे दरारों से
जब कभी शाम के अंधेरों में
राह पंछी जो भूल जाते हैं
वोह सुबह होते ही मीलों चलकर
अपनी शाखों पे लौट आते हैं
अपनी शाखों पे लौट आते हैं
कुछ हमारे भी साथ ऐसा हुआ
हम यही कह रहे इशारों से
ज़िन्दगी इस तरह से लगने लगी
रंग उड़ जाए जो दीवारों से
अब छुपाने को अपना कुछ ना रहा
ज़ख्म दिखने लगे दरारों से
ज़िन्दगी इस तरह लिरिक्स ( सोनू निगम ) मर्डर
ज़िन्दगी इस तरह से लगने लगी
रंग उड़ जाए जो दीवारों से
अब छुपाने को अपना कुछ ना रहा
ज़ख्म दिखने लगे दरारों से
अब तलक सिर्फ तुझको देखा था
आज तू क्या है ये भी जान लिया
आज जब गौर से तुझे देखा
हम गलत थे कहीं ये मान लीया
हम गलत थे कहीं ये मान लीया
तेरी हर भूल में कहीं शायद
हम भी शामिल है गुनहगारों से
अब छुपाने को अपना कुछ ना रहा
ज़ख्म दिखने लगे दरारों से
आ मेरे साथ मिलके हम फिर से
अपने खाबों का घर बनाते हैं
जो भी भिखरा है वो समेटते हैं
ढूंढकर फिर ख़ुशी को लाते हैं
ढूंढकर फिर ख़ुशी को लाते हैं
बोझ ज़िन्दगी का कटता है
एक दूजे के ही सहारों से
ज़िन्दगी इस तरह से लगने लगी
रंग उड़ जाए जो दीवारों से
अब छुपाने को अपना कुछ ना रहा
ज़ख्म दिखने लगे दरारों से
समाप्त
बोल : सईद क्वाद्रि
गायक : अनुराधा पौडवाल & सोनू निगम